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<poem>
देखि-देखि आतुरी बिकल-ब्रज-बारिन की,
::उद्धव की चातुरी सकल बहि जात है ।
कहै रतनाकर कुशल कहि पूछि रहे,
::अपर सनेह की न बातैं कहि जात हैं ॥
मौन रसना ह्वै जोग जदपि जमायो सबै,
::तदपि निरास-बासना न गहि जाति हैं ।
साहस कै कछुक उमाहि पूछिबै कौं ठाहि,
::चाहि उत गोपिका कराहि रहि जाति हैं ॥27॥
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