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लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले,
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै,
::आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब,
::हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं ।
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु,
::कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥
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