Changes

<poem>
रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब,
::सोई अब आँस ह्वै उबरि गिरिबौ करैं ।
कहै रतनाकर जुड़ात हुते देखैं जिन्हें,
::याद किएँ तिनकौं अँवां सौं घिरिबौ करैं ॥
दिननि के फेर सौं भयो है हेर-फेर ऐसौ,
::जाकौं हेरि-फेरि हेरिबौई हिरिबौ करैं ।
फिरति हुते हु जिन कुंजन में आठौं जाम,
::नैननि मैं अब सोई कुंज फिरिबौ करैं ॥7॥
</poem>
916
edits