भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
देखि दूरि ही तैं दौरि पौरि लगि भेंटि ल्याइ,
::आसन दै साँसनि समेटि सकुचानि तैं ।
कहै रतनाकर यौं गुनन गुबिंद लागे,
::जौलौं कछू भूले से भ्रमे से अकुलानि तैं ॥
कहा कहैं ऊधौ सौं कहैं हूँ तो कहाँ लौं कहैं,
::कैसे कहैं कहैं पुनि कौन सी उठानि तैं ।
तौलौं अधिकाई तै उमगि कंठ आइ भिंचि,
::नीर ह्वै बहन लागी बात अँखियानि तैं ॥3||
</poem>