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[[Category:ग़ज़ल]]
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तस्कीं<ref>संतोष</ref> को हम न रोएं, जो ज़ौक़-ए-नज़र<ref>देखने की अभिरुचि</ref> मिले
हूरान-ए-ख़ुल्द<ref>स्वर्ग की अप्सराएं</ref> में तेरी सूरत मगर मिले
तस्कीं अपनी गली में मुझ को हम रोएँ जो ज़ौक़कर दफ़्न बाद-ए-नज़र मिले<br>क़त्ल हूराँ-ए-ख़ुल्द में तेरी सूरत मगर मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर मिले <br><br>
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल <br>साक़ीगरी की शर्म करो आज, वर्ना हम मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मिले <br><br>
साक़ी गरी की शर्म करो आज वर्ना हम <br>तुमसे तो कुछ कलाम नहीं, लेकिन ऐ नदीम हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मेरा सलाम कहियो, अगर नामाबर मिले <br><br>
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम <br>तुमको भी हम दिखायें कि मजनूँ ने क्या किया मेरा सलाम कहियो अगर नामाबर मिले फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हां<brref>आंतरिक पीड़ा की व्याकुलता<br/ref>से गर मिले
तुम को भी लाज़िम नहीं के ख़िज्र की हम दिखायें के मजनूँ ने क्या किया <br>पैरवी करें फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-एमाना कि इक बुज़ुर्ग हमें हम-पिन्हाँ से गर सफ़र मिले <br><br>
लाज़िम नहीं के ख़िज्र की हम पैरवी करें <br>माना के एक बुज़ुर्ग हमें हम सफ़र मिले <br><br> ऐ साकनानसाकिनान-ए-कुचा-ए-दिलदार देखना <br>तुम को तुमको कहीं जो ग़ालिब-ए-आशुफ़्ता -सर मिले <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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