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{{KKRachna
|रचनाकार=नीलेश रघुवंशी
|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem> जब होती हूं हूँ पेड़ों के करीबउसके बालों की खुशबू ख़ुशबू याद आती है
अर्थ जब पीछा करते हैं
याद आते हैं - तोतले शब्द
पहन लेती हूं कवच तोतले शब्दों का
जागता है आत्मविश्वास मेरे अंदर
तोतले शब्दों की उंगली उँगली पकड़बोलियों के बाजार बाज़ार में टहलती हूंहूँ
आसमान जब भर जाता है
हवाई -यात्राओं से
याद आ जाती हैं पतंग की डोर अपने में लपेटे
उसकी नन्हीं उंगलियां उँगलियाँ हवाई -यात्राओं ने रास्ता छोड दिया हैडोर कसी हुई है उंग लि यों उंगलियों में
और पतंग में सवार हैं मेरे सपने
उनका शरीर है आदमकद आदमक़द आईनजिसमें दिख रहे हैं सबके बौने कदक़दउसकी आंखों आँखों में उगता है सूरज
और-
खेलता है चांद
छिपाछिपउल छिपा-छिपउअल का खेलजब भी होती हूं हूँ पेड़ों के करीब क़रीब
</poem>
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