Changes

|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
आठ बहनों का इकलौता भाई
 
कलाई पर जिसके बंधती पूरी आठ राखियाँ
 
आठों के आठ डोरे झुलसे हर बार भट्ठी में।
 
भाई के माथे पर लगा टीका
 
लगाया जो हमने हाथों में चूड़ियाँ पहनकर
 
पसीने से छूटा हर बार।
 
त्यौहार के नए कपड़े पहन
 
खड़ा होता है जब भाई तन्दूर के सामने
 
रोटी की महक और उसके नए कपड़ों की गंध
 
जाने कितनी बार गई मेरे अंदर।
 
भाई के माथे से टपकता पसीना हर बार चाहा पोंछ देना
 
बनियान और पैंट पहने भाई लगता है कितना सुंदर
 
उन लड़कियों के भाई बैठे होंगे जो घरों में
 
उनसे कई-कई गुना सुंदर हमारा भाई।
 
सोचती रही हमेशा
 
हमेशा चाहा पिता ने
 
त्यौहार पर भाई-बहन गुज़ारें कुछ समय हँसी-ठिठोली में
 
पिता की इस इच्छा को मिल नहीं पाए कभी पंख।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,277
edits