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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>मज़े जहाँ जहां के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं <br>सिवाय सिवाए ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं <br><br>
मगर ग़ुबार हुए पर हवा उड़ा ले जाये <br>वगर्ना ताब-ओ-तवाँ बाल-ओतवां<ref>ताकत और शक्ति</ref> बालो<ref>पंख</ref>-पर में ख़ाक नहीं <br><br>
ये किस बहीश्तशमाइल बहिश्त-शमाइल<ref>स्वर्ग-समान</ref> की आमद-आमद है <br>?के ग़ैर -जल्वा-ए-गुल राहगुज़र में ख़ाक नहीं <brref>फूलों की छवि के इलावा<br/ref>रहगुज़र में ख़ाक नहीं
भला उसे न सही, कुछ मुझी को रहम आता <br>असर मेरे नफ़स-ए-बेअसर बे असर में ख़ाक नहीं <br><br>
ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब है मयकश <br>शराबख़ाने के दीवार-ओ-दर में ख़ाक नहीं <br><br>
हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारतगरी से शर्मिंदा <brref>बरबादी</ref> से शर्मिंदा सिवाय हसरत-ए-तामीर घर में ख़ाक नहीं <brref>निर्माण की हसरत<br/ref>घर में ख़ाक नहीं
हमारे शेर शे'र हैं अब सिर्फ़ दिल्लगी के "'असद" <br>' खुला कि फ़ायेदा फ़ायदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं <br><br/poem>{{KKMeaning}}