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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>मज़े जहां जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
सिवाए ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं
मगर ग़ुबार हुए पर हवा उड़ा ले जाये
वगर्ना ताब-ओ-तवांतबाँ<ref>ताकत और शक्ति</ref> बालो<ref>पंख</ref>-पर में ख़ाक नहीं
ये किस बहिश्तबहिश्शते-शमाइलमाइल<ref>स्वर्ग-समान</ref> की आमद-आमद है?
के ग़ैर-जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छवि के इलावा</ref> रहगुज़र में ख़ाक नहीं
भला उसे न सही, कुछ मुझी को रहम आता
असर मेरे नफ़स-ए-बे असर बेअसर में ख़ाक नहीं
ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब है मयकश
हमारे शे'र हैं अब सिर्फ़ दिल्लगी के 'असद'
खुला कि फ़ायदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं</poem>{{KKMeaning}}