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<poem>
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
सिवाए ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं
वगर्ना ताब-ओ-तबाँ<ref>ताकत और शक्ति</ref> बालो<ref>पंख</ref>-पर में ख़ाक नहीं
ये किस बहिश्शतेबहिश्ते-माइलशमाइल<ref>स्वर्ग-समान</ref> की आमद-आमद है?
के ग़ैर-जल्वा-ए-गुल<ref>फूलों की छवि के इलावा</ref> रहगुज़र में ख़ाक नहीं