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रुबाइयां / ग़ालिब

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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब}}
<poem>आतिशबाज़ी है जैसे शग़्ले-अतफ़ाल<ref>बच्चों का खेल</ref>
है सोज़े-ज़िगर का भी इसी तौर का हाल
था मूजीदे-इश्क़ भी क़यामत कोई
तकरार रवा<ref>उचित</ref> नहीं तो तजदीद<ref>फिर शुरु करना</ref> सही
है ख़ल्क़ हसद <ref>ईर्ष्या</ref> क़माश <ref>कमीज़ें</ref> लड़ने के लिए
वहशत-कदा-ए-तलाश लड़ने के लिए
यानी हर बार सूरते-क़ागज़े-बाद<ref>पतंग</ref>
दुःख जी के पसंद हो गया है 'ग़ालिब'
दिल रूककर रुककर बंद हो गया है 'ग़ालिब'वल्लाह की कि शब को नींद आती ही नहीं
सोना सौगन्द<ref>मुश्किल</ref> हो गया है 'ग़ालिब'
गोयम मुश्किल वगरना गोयम मुश्किल<ref>मैं मुश्किल ही कह सकता हूँ वर्ना मेरे लिए शेर कहना मुश्किल है</ref>
कहते हैं की कि अब वो मर्दम-आज़ार<ref>मनुष्यों को सताने वाला</ref> नहींउश्शाक़ <ref>प्रेमीयों</ref> की पुरसिश <ref>हाल-चाल पूछना</ref> से उसे आ़र<ref>लज्जा</ref> नहीं
जो हाथ कि ज़ुल्म से उठाया होगा
क्योंकर मानूं कि उसमें तलवार नहीं
आराम के असबाब<ref>सोमान</ref> कहाँ से लाऊं?
रोज़ा मेरा ईमान है 'ग़ालिब' लेकिन
ख़स-ख़ाना-ओ-बर्फ़ाब<ref>बर्फ़ का पानी</ref> कहाँ से लाऊं?</poem>
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