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पहाड़ों में निष्क्रिय है देव, हालाँकि है पर्वत का वासी
शांत,सुखी उन लोगों को वह, लगता है सच्चा-साथी
कंठहार-सी टप-टप टपके, उसकी गरदन से चरबी
ज्वार-भाटे-से वह ले खर्राटें, काया भारी है ज्यूँ हाथी
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