भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवान-ए-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझ से
जफ़ायें<ref>अत्याचार</ref> करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझ से
कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझसे ख़ुदाया! ज़ज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर<brref>प्रभाव</ref> उलटी है जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा कि जितना खैंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे <br><br>मुझ से
ख़ुदाया! ज़ज़्बावो बद-ख़ू<ref>बदमिजाज़</ref>, और मेरी दास्तान-ए-दिल की मगर तासीर उलटी है इश्क़ तूलानी<brref>लंबी</ref>कि जितना खेंचता हूँ और खिंचता जाये है मुझसे इबारत<brref>वर्णन<br/ref>मुख़्तसर<ref>संक्षिप्त</ref>, क़ासिद<ref>संदेशवाहक</ref> भी घबरा जाये है मुझ से
उधर वो बदख़ू और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी बदगुमानी<brref>संदेह</ref>इबारत मुख़्तसर, क़ासिद भी घबरा जाये है मुझसे , इधर ये नातवानी<brref>कमज़ोरी<br/ref>है ना पूछा जाये है उससे, न बोला जाये है मुझ से
उधर वो बदगुमानी हैसँभलने दे मुझे ऐ नाउम्मीदी, इधर ये नातवानी क्या क़यामत है <br>ना पूछा जाये है उससे, न बोला कि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझसे <br><br>मुझ से
सँभलने दे मुझे ऐ नाउमीदीतकल्लुफ़ बर-तरफ़<ref>साफ, क्या क़यामत है सीधी बात,औपचारकिता को एक तरफ रख कर<br/ref>कि दामन-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझसे , नज़्ज़ारगी<brref>दर्शन<br/ref>में भी सही, लेकिन वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझ से
तकल्लुफ़ बर तरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही, लेकिन हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़<brref>प्यार की लड़ाई</ref> में ज़ख़्मी वो देखा न भागा जायेहै मुझसे, कब ये ज़ुल्म देखा न ठहरा जाये है मुझसे <br><br>मुझ से
हुए हैं पाँव ही पहले नवर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी <br>न भागा जाये क़यामत है मुझसे, न ठहरा जाये है मुझसे कि होवे मुद्दई<brref>दावा करने वाला<br/refक़यामत है कि होवे मुद्दई का हमसफ़र "ग़ालिब"<br>वो काफ़िर<ref>यहाँ इस का मतलब - प्रिय</ref>, जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाये है मुझसे मुझ से<br><br/poem>{{KKMeaning}}
Delete, Mover, Uploader
894
edits