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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
ज़िंदगी के अथाह वीरानों में यह कौन आवाज़ देता है
यह कौन पगध्वनि आती है
कितने जंगलों, मैदानों, पर्वतों को पार करती
असंख्य फूलों का पराग लिए,
रंग से सराबोर दिशाएं
और अनंत उजास लिए
जीवन का यह वैभव
यह उठान
यह भव्यता, यह दूसरा ही संसार
ये जाने कब की देखी
स्वप्न-छवियां

यह कौन रचता है ज़िंदगी के दुखों को
इस विराट स्वप्नमाला में
यह कौन पुकारता है

नदी के कांठों पर उड़ते इस आंचल का रंग
फैलता ही जाता है
खेतों के पार
संगीत के झरने बहते हैं
दिशाओं को छूते
और एक छवि में लीन हो जाते हैं --

इन रूपों में तो तुम्हारी कल्पना न थी
भव्यता ऐसी भी होती है !
वसंत ऐसे भी आता है !!
</poem>
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