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मर्सिया / राही मासूम रज़ा

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<poem>
एक चुटकी नींद की मिलती नहीं
अपने ज़ख़्मों पर छिड़कने के लिए
हाय हम किस शहर में मारे गये

घंटियाँ बजती हैं
ज़ीने पर कदम की चाप है
फिर कोई बेचेहरा होगा
मुँह में होगी जिसके मक्खन की ज़ुबान
सीने में होगा जिसके इक पत्थर का दिल
मुस्कुरकर मेरे दिल का इक वरक़ ले जाएगा
</poem>
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