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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार विनोद
}}
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धुंध में लिपटा हुआ साया कोई
आज़माने फिर हमें आया कोई
दिन किसी अंधे कुएँ में जा गिरा
चाँद को घर से बुला लाया कोई
चिलचिलाती धूप में तनहा शजर
बुन रहा किसके लिए छाया कोई
दुश्मनी भी एक दिन कहने लगी
दोस्ती-जैसा न सरमाया कोई
पेड़ जंगल के हरे सब हो गए
ख़्वाब आँखों में उतर आया कोई
आज की ताज़ा ख़बर इतनी-सी है
गीत चिड़िया ने नया गाया कोई
दूसरों से हो गिला क्यों कर भला
कब, कहाँ ख़ुद को समझ पाया कोई
</poem>
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|रचनाकार=कुमार विनोद
}}
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धुंध में लिपटा हुआ साया कोई
आज़माने फिर हमें आया कोई
दिन किसी अंधे कुएँ में जा गिरा
चाँद को घर से बुला लाया कोई
चिलचिलाती धूप में तनहा शजर
बुन रहा किसके लिए छाया कोई
दुश्मनी भी एक दिन कहने लगी
दोस्ती-जैसा न सरमाया कोई
पेड़ जंगल के हरे सब हो गए
ख़्वाब आँखों में उतर आया कोई
आज की ताज़ा ख़बर इतनी-सी है
गीत चिड़िया ने नया गाया कोई
दूसरों से हो गिला क्यों कर भला
कब, कहाँ ख़ुद को समझ पाया कोई
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