{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
सताइश<ref>प्रशंसक</ref>-गर है ज़ाहिद<ref>तपस्वी</ref> इस क़दर जिस बाग़े-रिज़वां<ref>स्वर्ग का बाग</ref> का
वह इक गुलदस्ता है हम बेख़ुदों के ताक़े-निसियां<ref>विस्मृति को ताक़भुलककड़ों का आला</ref> का
बयां कया क्या कीजिये बेदादे-काविश-हाए-मिज़गां<ref>पलकों के चुभने की पीड़ाचुभन की बे-इंसाफी</ref> का
कि हर इक क़तरा-ए-ख़ूं दाना है तस्बीहे-मरजां<ref>मूंगे की माला</ref> का
न आई सतवते-क़ातिल<ref>हत्यारे का आंतक</ref> भी मानअ़ <ref>रोकने वाला</ref> मेरे नालों <ref>रुदन</ref> को लिया दांतों में जो तिनका , हुआ रेशा <ref>जड़</ref> नैस्तां<ref>बांस का जंगल</ref> का
दिखाऊंगा तमाशा, दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
किया आईनाख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने
करे जो परतव<ref>हाल</ref>-ए-ख़ुरशीद-आलम<ref>दुनिया के सूरज का प्रतिबिम्बकी किरण पड़ना</ref> शबनमिस्तां<ref>जहाँ ओस पड़ती होकी दुनिया</ref> का
मेरी तामीर<ref>निर्माण</ref> में मुज़्मिर<ref>निहित, छुपी हुई</ref> है इक सूरत ख़राबी की हयूला<ref>छवि</ref> बरक़-ए-ख़िरमन<ref>खेत फसल पर गिरने वाली बिजली</ref> का है ख़ून-ए-गरम दहक़ां <ref>किसान</ref> का
उगा है घर में हर-सू<ref>हर तरफ़</ref> सब्ज़ा<ref>घास-फूस</ref>, वीरानी, तमाशा कर
मदार <ref>नींव</ref> अब खोदने पर घास के , है मेरे दरबां का
ख़मोशी में निहां<ref>निहितछुपा हुआ</ref> ख़ूंगश्ता<ref>ख़ून की हुई</ref> लाखों आरज़ूएं हैं
चिराग़-ए-मुरदा<ref>बुझा हुआ चिराग</ref> हूं मैं बेज़ुबां गोर-ए-ग़रीबां<ref>ग़रीब की कब्र</ref> का
हनोज़ हनूज़<ref>अभी</ref> इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार<ref>प्रेयसी के विचार-चिन्ह का प्रतिबिम्ब</ref> बाक़ी है दिल-ए-अफ़सुर्दा <ref>उदास-ठंडा दिल</ref> गोया हुजरा<ref>कोठरी</ref> है यूसुफ़ के ज़िन्दां<ref>कैदखाना</ref>का
बग़ल में ग़ैर की आप आज सोए सोते हैं कहीं, वरनासबब <ref>मतलब</ref> क्या? ख़्वाब में आकर तबस्सुम-हाए-पिनहां<ref>हल्की-सी मुस्कराहट</ref> का
नहीं मालूम किस-किसका लहू पानी हुआ होगा!
क़यामत है सरश्क-आलूदाहोना<ref>आंसुओं में भीगीभीगना</ref> होना तेरी मिज़गां<ref>पलकेंपलकों</ref> का
नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना<ref>मृत्यु का मार्ग</ref> ग़ालिब