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Kavita Kosh से
सो झुकता जा रहा है अब ये सर आहिस्ता आहिस्ता<br><br>
मेरी शोलामिज़ाजी को वो जन्गल जंगल कैसे रास आये<br>
हवा भी साँस लेती हो जिधर आहिस्ता आहिस्ता<br><br>