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अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल<ref>मिलन की रात</ref>
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ <ref>भरा हुआ</ref> है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने'माअ़नेपंखा नफ़स-ए-सर्द <ref>ठंडी सांस</ref> का झलने नहीं देते
</poem>
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