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{{KKRachna
|रचनाकार=ग़ालिब
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>दोस्त ग़मख्वारी में मेरी सअ़ई<ref>सहायता</ref> फ़रमायेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ुन न बढ़ आयेंगे क्या
बे-नियाज़ी<ref>उपेक्षा</ref> हद से गुज़री,बन्दा -परवर <ref>मालिक, रखवाला</ref> कब तलक हम कहेंगे हाल-ए-दिल; और आप फ़रमायेंगे, 'क्या?'
हज़रत-ए-नासेह <ref>महान उपदेशक</ref> गर आएं, दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह<ref>आँखें और दिल रस्ते में गलीचे की तरह बिछ जाएगें</ref>
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझायेंगे क्या
आज वां तेग़ो-कफ़न <ref>तलवार और कफ़न</ref> बांधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र<ref>प्रशन उठाना, ना-नुकर करना</ref> मेरा क़त्ल करने में वो अब लायेंगे क्या
गर किया नासेह <ref>उपदेशक</ref> ने हम को क़ैद अच्छा! यूं सही
ये जुनून-ए-इश्क़ के अन्दाज़ छुट जायेंगे क्या
ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़<ref>जु्ल्फ़ों के कैदी</ref> हैं , ज़ंजीर से भागेंगे क्योंहैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा , ज़िन्दां<ref>कैदखाना</ref> से घबरायेंगे क्या
है अब इस माअ़मूरा<ref>नगर</ref> में , क़हते-ग़मे-उल्फ़त<ref>प्रेम के दुखों का अकाल</ref> 'असद'हमने ये माना कि दिल्ली में रहें, खायेंगे क्या</poem>
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