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15:02, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
प्रेम-पाल पलटि उलटि पतवारी-पति
::केवल परान्यौ कूब-तूँबरी अधार लै ।
कहै रतनाकर पठायौं तुम्हैं तापै पुनि
::लादन कौं जोग कौ अपार अति भार लै ॥
निरगुन ब्रह्म कहौ रावरौ बनैहै कहा
::ऐहै कछु काम हूँ न लंगर लगार लै ।
विषम चलावौ ज्ञान-तपन-तपी ना बात
::पारी कान्ह तरनी हमारी मँझधार लै ॥69॥
</poem>