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15:25, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
सुघर सलोने स्यामसुन्दर सुजान कान्ह
::करुना-निधान कें बसीठ बनि आए हौ ।
प्रेम-प्रनधारी गिरधारी को सनेसौ नाहिं
::होत हैं अंदेस झूठ बोलत बताए हौ ॥
ज्ञान-गुन गौरव-गुमान-भरे फूले फिरौ
::बंचक के काज पै न रंचक बराए हौ ।
रसिक सरौमनि कौ नाम बदनाम करौ
::मेरी जान ऊधौ कूर-कूबरी-पठाए हौ ॥74॥
</poem>