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|रचनाकार= जावेद अख़्तर|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:गज़लग़ज़ल]]<poem>दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं <br>ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं <br><br>
उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी <br>रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से सर झुकाए हुए चुपचाप गुज़र कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं <br><br>
रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब छत की कड़ियों से <br>उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगरकोई पूछे तो कहें क्या कि किधर मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं <br><br>
नर्म आवाज़ अल्फ़ाज़, भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे , मुहज़्ज़ब<brref>सभ्य बोली</ref> लहजे पहली बारिश में ही में ये रंग उतर जाते हैं उस दरीचे<brref>खिड़की<br/ref>में भी अब कोई नहीं और हम भी सर झुकाए हुए चुपचाप गुज़र जाते हैं </poem>{{KKMeaning}}