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|रचनाकार=जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]<poem>
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया
एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
</poem>