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[[Category:गज़ल]]
<poem>मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में <br>कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में <br><br>
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे <br>अजीब बात हुई है उसे भुलाने में <br><br>
जो मुंतज़िर <ref>इंतज़ार में</ref> न मिला वो तो हम है शर्मिंदा <br>कि हमने देर लगा दी पलट के आने में <br><br>
लतीफ़ <ref>मज़ेदार</ref> था वो तख़ैय्युल तख़य्युल<ref>सोच</ref> से, ख़्वाब से नाज़ुक <br>गवा दिया हमने ही उसे आज़माने में <br><br>
समझ लिया था कभी एक सराब <ref>मरीचिका</ref> को दरिया <br>पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में <br><br>
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा <br>ज़ियादा ज़्यादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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