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04:56, 3 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
आए कंसराइ के पठाए वे प्रतच्छ तुम
::लागत अलच्छ कुबजा के पच्छवारे हौ ।
कहै रतनाकर बियोग लाइ लाई उन
::तुम जोग बात के बवंडर पसारे हौ ॥
कोऊ अबलानि पै न ढरकि ढरारे होत
::मधुपुरवारे सब एकै ढार ढारे हौ ।
लै गए अक्रूर क्रूर तन तैं छुड़ाइ हाय
::ऊधौ तुम मन तैं छुड़ावन पधारे हौ ॥77॥
</poem>