Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
विकसित विपिन बसंतिकावली कौ रंग
::लखियत गोपिन के अंग पियराने में ।
बौरे वृन्द लसत रसाल-बर बारिनि के
::पिक की पुकार है चबाव उमगान में ॥
होत पतझार झार तरुनि-समूहनि कौ
::बैहरि बतास लै उसास अधिकाने में ।
काम बिधि बाम की कला मैं मीन-मेष कहा
::ऊधौ नित बसत बसंत बरसाने में ॥87॥
</poem>
916
edits