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07:17, 3 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
विकसित विपिन बसंतिकावली कौ रंग
::लखियत गोपिन के अंग पियराने में ।
बौरे वृन्द लसत रसाल-बर बारिनि के
::पिक की पुकार है चबाव उमगान में ॥
होत पतझार झार तरुनि-समूहनि कौ
::बैहरि बतास लै उसास अधिकाने में ।
काम बिधि बाम की कला मैं मीन-मेष कहा
::ऊधौ नित बसत बसंत बरसाने में ॥87॥
</poem>