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07:18, 3 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
ठाम-ठाम जीवनबिहीन दीन दीसै सबे
::चलति चबाई-बात तापत घनी रहै ।
कहै रतनाकर न चैन दिन-रैन परै
::सूखी पत-छिन भई तरुनि अनी रहै ॥
जारयौ अंग अब तौ बिधाता है इहां कौ भयौ
::तातैं ताहि जारन की ठसक ठनी रहै ।
बगर-बगर बृषभान के नगर हित
::भीषम-प्रभाव ऋतु ग्रीष्म बनी रहै ॥88॥
</poem>