{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार== समयातीत पूर्ण - ९ कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>है क्रांति दृष्टा
तुमने आमूल बदल दिया
जीवन पद्धति को
कहा इन्द्र -पूजा व्यर्थ है
बंद करा के इन्द्र पूजा
वप्नी अपनी रक्षा आप करना सिखाया
अन्याय और अत्याचार के विरूध विरूद्ध
तुम्हारा संघर्ष अनवरत जारी रहा
हर उस शक्ति से संघर्ष किया
जो जन विरोधी जनविरोधी एवम निरंकुश थी
चाहे वह मामा कंस हो या क्रूर जरासंध
तुमने बताया ख़ून के रिश्तो ला रिश्तों से बढ़कर
लोकमंगल है
निति वही श्रेष्ट है जोसमाज जो समाज के बृहद हित में हो
प्रेम का मूल्य सबसे बढ़कर है
स्त्रियो स्त्रियों का सम्मान और स्वतंत्रता
प्रथम भारतीय
निर्भय वही है जो निर्लिप्त है
व्यक्तिगत महत्वकांचा महत्वकांक्षा सर्वप्रथम त्याज्य है सत्य वह नहीं है जो हमने हम सुन कर मन मनन करते है सत्य वही है जिसका हम अविष्कार आविष्कार करते हैं
है परम क्रन्तिकारी
हम अल्पग्य आज भी वहीँ खड़े हैं
जहाँ तुम्हारे समय थे
तुम अपने समय से कितना पहले
आये आए थे ?है अग्रगामी I</poem> ==