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02:06, 15 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
दीन्यौ प्रेम-नेम-गरुवाई-गुन ऊधव कौं
::हिय सौं हमेव-हरुवाई बहिराइ कै ।
कहै रतनाकर त्यौं कंचन तनाई काय
::ज्ञान-अभिमान की तमाई बिनसाइ कै ॥
बातनि की धौंक सौं धमाई चहुँ कोदनि सौं
::निज बिरहानल तपाइ पघिलाइ कै ।
गोप की बधूटी प्रेम-बूटी के सहारे मारे
::चल-चित पारे की भसम भुरुकाइ कै ॥101॥
</poem>