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Kavita Kosh से
अभय,अनंत,अथाह अंतरिक्ष में
सूक्षम पंख फैला
सिन्दूरी गुलाब गुलाल में खेल रहा हूँ
जानता हूँ
झिलमिलाए
आंखों के तरल कांच।
रात :
अंधेरे की चन्द बूंदे
अंधी सड़कों के यात्री ने
कि अंधेरे से अंधेरे तक की यात्रा भी
जितनी कि सूर्य से सूर्य तक
कि कहीं कठिन है