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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>इस रंग से लिपटकर अभी सोये हैं<br />धरती के भीतर<br />कपास और सीताफल के बीज<br /><br />दिया-बाती के बाद<br />इसी रंग को सौंप देते हैं हम<br />अपने दिन भर की थकान<br />और उधार ले लेते हैं जराज़रा-सी नींद<br /><br />यह रंग दोने में भरे उन जामुनों का है<br />जो बाजार बाज़ार में बिककर<br />न जाने कितने घरों के लिए<br />नोन-तेल-लकड़ी में बदल जायेंगे<br />जाएँगे<br />यह रंग तुम्हारे बालों के मुलायम समुद्र का है<br />जो संगीत और सुगन्ध से भरा है<br />और जहॉं मैं सिर से पॉंव तक डूब गया हूं<br />हूँ<br />यह भादों की उन घटाओं का रंग है<br />जिन्हें छुपाये छुपाए रखती है मॉं माँ अपनी पलकों में<br />और डूबने से बचा रहता है घर<br /><br />कितनी चींखेंचीख़ें, हत्यायें हत्याएँ और रक्त लिए<br />आ धमकता है यह रंग<br />सूरज के डूबते ही<br /><br />और एक दिये के सामने<br />पराजित रहता है रात भर.<br />भर।<br /poem>