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इस बार<br {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लाल्टू|संग्रह= एक झील थी बर्फ़ की /लाल्टू}}<poem>इस बारपहाड़ों से उतरते<br />तुम्‍हें देखता रहा<br /><br />तुम्‍हारी चाही सन्‍तान को<br />पहाड़ी बादल<br />मेरे रोओं में बॉंटते बाँटते रहे<br /><br />सोचता रहा<br />कैसी होगी वह दुनिया<br />जहॉं जहाँ तुम्‍हारी मेरी<br />सन्‍तान खिलेगी<br /><br />उसे हम<br />पहाड़ तो जरूर देंगे<br />जब तुम उसे<br />मेरी बॉंहों बाँहों में देख<br />खुश हो जाओ<br />मैं धीरे से उसे कहूंगा<br />कहूँगा<br />कैसे उसकी मॉं माँ को<br />मैंने पहाड़ों पर चूमा था<br />और<br />लाज से झुक गये गए थे पहाड़.<br />पहाड़।<br /poem>
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