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गाँव की आँख / एकांत श्रीवास्तव

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भूखे-प्‍यासे<br />
धूल-मिट्टी में सने<br />
हम फुटपाथी बच्‍चे<br />
हुजूर, माई-बाप, सरकार<br />
हाथ जोड़ते हैं आपसे<br />
दस-पॉंच पैसे के लिए<br />
हों तो दे दीजिए<br />
न हों तो एक प्‍यार भरी नजर<br />
<br />
हम मॉं की आंख के सूखे हुए आंसू<br />
हम पिता के सपनों के उड़े हुए रंग<br />
हम बहन की राखी के टूटे हुए धागे<br />
<br />
कई महीने बीत गये<br />
ट्रेन में लटककर यहॉं आये<br />
बिछुड़े अपने गॉंव से<br />
<br />
लेकिन आज भी<br />
जब सड़क के कंधे से टिककर<br />
भूखे-प्‍यासे सो जाते हैं हम<br />
घुटनों को पेट में मोड़े<br />
<br />
तब हजारों मील दूर से<br />
हमें देखती है<br />
गॉंव की आंख.<br />
<br />
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