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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद|संग्रह=
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<Poem>
आह ! वेदना मिली विदाई<br>मैंने भ्रमवश जीवन संचित,<br>मधुकरियों की भीख लुटाई<br><br>
छलछल थे संध्या के श्रमकण<br>आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण<br>मेरी यात्रा पर लेती थी<br>नीरवता अनंत अँगड़ाई<br><br>
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में<br>गहन-विपिन की तरु छाया में<br>पथिक उनींदी श्रुति में किसने<br>यह विहाग की तान उठाई<br><br>
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी<br>रही बचाए फिरती कब की<br>मेरी आशा आह ! बावली<br>तूने खो दी सकल कमाई<br><br>
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर<br>प्रलय चल रहा अपने पथ पर<br>मैंने निज दुर्बल पद-बल पर<br>उससे हारी-होड़ लगाई<br><br>
लौटा लो यह अपनी थाती<br>मेरी करुणा हा-हा खाती<br>विश्व ! न सँभलेगी यह मुझसे<br>इसने मन की लाज गँवाई<br><br/poem>
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