दो आदमी{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /Poem>दो आदमीपार करते हैं सोन<br />सॉंझ के झुटपुटे में<br />तोड़कर पानी की नींद<br /><br />इस पार जंगल<br />उस पार गॉंव<br />गाँवऔर बीच में सोन<br />पार करते हैं दो आदमी<br />गमछों में बॉंधकर करौंदे और जामुन<br />कंधों पर कुल्हाडियॉं<br />और सिरों पर लकडियॉं लिये<br /><br />लकडियॉं जो जलेंगी उनके घर<br />और खुशी से फूलकर<br />कुप्पा हो जायेंगी रोटियां<br />जाएँगी रोटियाँकुप्पा हो जायेंगे जाएँगे दो घरों के मन<br /><br />हरहराता है जंगल<br /><br />उन्हें विदा देने <br />सोने के किनारे तक आती है<br />मकोई के फूलों की गंध<br />और वापस लौट जाती है<br /><br />उनके जाने के बाद भी <br />देर रात तक<br />जागता रहता है पानी.<br /><br />पानी।