भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
31 bytes added,
13:45, 28 अप्रैल 2010
मेले में{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /Poem>मेले मेंएकाएक उठती है रूलाई की इच्छा<br />जब भीड़ एक दुकान से दूसरी दुकान<br />एक चीज चीज़ से दूसरी चीज<br />चीज़और एक सर्कस से दूसरे तमाशे पर<br />टूट रही होती है<br /><br />एक धूल की दीवार के उस पार<br />साफसाफ़-साफ साफ़ दिखता है<br />पन्द्रह बरस पहले का घर और मॉं<br />माँ<br />आज भी रखी है पन्द्रह बरस बाद<br />गुड़ और रोटी के साथ सहेजी हुई<br />मॉं की आवाज जो भीड़ में<br />उंगली पकड़कर चलने को कहती है<br /><br />न मैं भटका न खोया<br /><br />अगर कुछ खोया तो बस एक घर<br />इस मेले में<br />मेजिसे मैं आज तक ढूंढ नहीं पाया.<br />पाया।<br /poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader