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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>मायावी सरोवर की तरह<br />अदृश्‍य हो गये गए पिता<br />रह गये गए हम<br />पानी की खोज में भटकते पक्षी<br /><br />ओ मेरे आकाश पिता<br />टूट गये हम<br />तुम्‍हारी नीलिमा में टॅंके<br />झिलमिल तारे<br /><br />ओ मेरे जंगल पिता<br />सूख गये हम<br />तुम्‍हारी हरियाली में बहते<br />कलकल झरने<br /><br />ओ मेरे काल पिता<br />बीत गये तुम<br />रह गये हम<br />तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की<br />उदास तारीखें<br /><br />हम झेलेंगे दुःख<br />पोंछेगे ऑंसू<br />और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर<br />बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल<br />ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल.<br /><br />
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 09:48ओ मेरे आकाश पिताटूट गए हमतुम्‍हारी नीलिमा में टँकेझिलमिल तारे ओ मेरे जंगल पितासूख गए हमतुम्‍हारी हरियाली में बहतेकलकल झरने ओ मेरे काल पिताबीत गए तुमरह गए हमतुम्‍हारे कैलेण्‍डर कीउदास तारीखें हम झेलेंगे दुःखपोंछेंगे आँसूऔर तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकरबनेंगे सरोवर, 24 अप्रैल 2010 (UTC)आकाश, जंगल और कालताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।</poem>
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