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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>धान-कटाई के बाद <br />खाली खेतों में<br />वे रंगीन चिडि़यों की तरह उतरती हैं<br />सिला बीनने झुण्ड की झुण्ड<br />और एक खेत से दूसरे खेत में<br />उड़ती फिरती हैं<br /><br />दूबराज हो<br />विष्णुभोग या नागकेसर<br />वे रंग और खुशबू से<br />उन्हें पहचान लेती हैं<br /><br />दोपहर भर फैली रहती है<br />पीली धूप में उनकी हॅंसी<br />और गुनगुनाहट<br /><br />उनके बालों में हॅंसते रहते हैं<br />कनेर के फूल<br />और एक गुलाबी रोशनी <br />उनके चेहरे से फूटकर<br />फैलती रहती है धरती पर<br /><br />जब झुकने लगते हैं दिन के कन्धे<br />और उन्हें लगता है कि इतनी <br />बालियों से हो जायेगा तैयार<br />एक जून के लिए बटकी भर भात<br />वे लौट जाती हैं घर<br /><br />जैसे चोंच मारकर उड़ जाने के बाद भी<br />बहुत देर तक भरा रहता है<br />पानी में जलपॉंखी का संगीत <br />खाली खेतों में<br />बहुत देर तक भरा रहता है <br />उनका होना.<br /><br />