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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>बरसों से एक पुकार<br />मेरा पीछा कर रही है<br />एक महीन और मार्मिक पुकार<br />इस महानगर में भी <br />मैं इसे साफ-साफ सुन सकता हूं.<br />हूँ।<br />आज जब यह पहली बारिश के बाद<br />धरती की सोंधी सुगंध की तरह<br />हर तरु से उठ रही है<br />मैं एकदम बेचैन और अवश<br />हो गया हूं हूँ इसके सामने<br /><br />क्या यह जड़ों की पुकार है<br />फुनगियों के लिए?<br />क्या यह डूबते दिन की पुकार है<br />पखेरूओं के लिए?<br /><br />यह उस रास्ते की पुकार हो सकती है<br />जिसे अभी लौटने को कहकर<br />मैं छोड़ आया हूं<br />हूँ<br />यह पहाड़ों में भटकती कंदील की पुकार होगी<br /><br />यह मां माँ की पुकार होगी<br />मैं बरसों से घर नहीं लौटा.<br />लौटा।<br /poem>