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|रचनाकार = ज़ैदी जाफ़र रज़ा
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लहरें साहिल तक जब आयीं, चांदी के वरक़ चिपकाए हुए.
मैं बाग़ से कल जब गुज़रा था, इक ठेस लगी थी दिल को मेरे,
कुछ फूलों में बे-रंगी थी, कुछ फूल मिले मुरझाये हुए.
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