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Kavita Kosh से
<Poem>
फूलों की आत्मा में बसी
जीना है
अभी बहुत-बहुत बरस
जल में 'छपाक' से
चुकाना है
बरसों से बकाया
पिछले दुःखों दुखों का ऋण
पोंछना है
पृथ्वी के चेहरे से
पानी की आंखों आँखों में
पूरब का गुलाबी सपना बनकर
उगना है
अभी बहुत-बहुत बरस.बरस।</poem>