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अस्वीकरण
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रेखा चित्र / सुमित्रानंदन पंत
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17:45, 3 मई 2010
:फिर स्वर्णिम गंगा धारा,
जिसके निश्चल उर पर विजड़ित
:
रत्नश
रत्न
छाय नभ सारा!
फिर बालू का नासा
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