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क्षुद्र आत्म-पर भूल, भूत सब हुए समन्वित,
तणतृण, तरु से तारालि--सत्य है एक अखंडित!
मानव ही क्यों इस असीम समता से वंचित?
ज्योति भीत, युग युग से तमस विमूढ़, विभाजित!!
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