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Kavita Kosh से
जब आभा देही नारी आह्लाद प्रेम कर वर्षण
मधुर मानवी की महिमा से भू को करती पावन।
तुम में सब गुण हैं: तोड़ो अपने भय कल्पित बन्धन,
जड़ समाज के कर्दम से उठ कर सरोज सी ऊपर,