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फिसलते ही फिसलते आ गए नाज़ुक मुहाने तक
जरूरी ज़रूरी है कि अब आगे से हमसे गल्तियाँ कम हों।
यही जो बेटियाँ हैं ये ही आखिर आख़िर कल की माँए हैं
मिलें मुश्किल से कल माँए न इतनी बेटियाँ कम हों।
दिलों को भी तो अपना काम करने का मिले मौकामौक़ा
दिमागों ने जो पैदा की है शायद दूरियाँ कम हों।
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