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Kavita Kosh से
इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे <br>
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है <br><br>
दिल था एक शोला मगर बीत गये दिन वो क़तील, <br>
अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है <br><br>