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काई / अनातोली परपरा

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|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा
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टुण्ड्रा प्रदेश में
 
जहाँ कठोर ठंडी हवाएँ चलती हैं
 
अंगुल भर ज़मीन भी दिखाई नहीं देती
 
सिर्फ़ बर्फ़ ही बर्फ़ है जहाँ चारों ओर
 अंधेरे अँधेरे का साम्राज्य है, होती नहीं है भोर 
फूल, पत्तियाँ, पेड़ जैसी कोई चीज़ नहीं
 
मैंने धड़कते देखा वहाँ जीवन
 
काई के रूप में
 
और वहाँ
 
फटा था विशाल एक ज्वालामुखी जहाँ
 
धुआँ ही धुआँ था, लावा ही लावा चारों ओर
 
आसमान में बादल भी करते नहीं थे शोर
 
मैंने देखा वहाँ भी जीवन-फूल खिला
 
काई के रूप में
 
काई को प्रकाश नहीं चाहिए
 
कोई भोजन, सांत्वना, कोई आस नहीं चाहिए
 
कहीं भी उग आती है वह
 
कैसी भी हालत हो, कैसा भी मौसम हो
 
जीवन हो कैसा भी, देती है सुख
 
जब से मैंने ख़ुद को काई जैसा ढाला
 
भूल गया मैं इस दुनिया के सारे दुख
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