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क्या मेरी आत्मा का चिर धन / सुमित्रानंदन पंत
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08:51, 10 मई 2010
::निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
::मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।
मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शों का,
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