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चेतना, अवचेतना के सिन्धु भी मैने खंगाले<br>
आईने पर जो जमी उस गर्द को कण कण बुहारा<br>
सब हटाये गर्भ-ग्रह गृह में जम गये थे जो भी जाले<br><br>
तीर पर भागीरथी के, आंजुरि में नीर भर कर<br>
एक चितकबरा है, दूजा इन्द्रधनु के रंग वाला<br>
जिन परों को डायरी में है रखा मैने संभाला<br>
तो है संभव देख पायें फिर किसी दिन का उजाला<br><br>
उत्तरों की माल मुझको प्रश्न से पहले मिली है<br>
फिर न जाने किसलिये देते परीक्षा डर रहा हूँ<br><br>
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